???? ??? ?? ??????? ?????



बड़े हिल स्टेशनों की चमक-दमक में अक्सर हम उनके आसपास की ज्यादा खूबसूरत जगहों को भूल जाते हैं। सैलानी ज्यादा लोकप्रिय जगहों पर ही आकर अटक जाते हैं। ऐसी ही बात सुरकंडा देवी के मंदिर के बारे में भी कही जा सकती है। मसूरी के आगे धनौल्टी या सुरकंडा देवी के मंदिर की बात ही नहीं होती                        
                                           सुरकंडा का मंदिर देवी का   महत्वपूर्ण  स्थान है।     दरअसल  गढ़वाल के इस इलाके में  प्रमुखतम धार्मिक स्थान के तौर पर माना जाता है। लेकिन इस जगह की अहमियत केवल इतनी नहीं है। यह इस इलाके का सबसे ऊंचा स्थान है और इसकी ऊंचाई 9995 फुट है। मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है। इसके चलते जब आप ऊपर हों तो चारों तरफ नजरें घुमाकर 360 डिग्री का नजारा लिया जा सकता है। केवल इतना ही नहीं, इस जगह की दुर्लभता इसलिए भी है कि उत्तर-पूर्व की ओर यहां हिमालय की श्रृंखलाएं बिखरी पड़ी हैं। चूंकि बीच में कोई और व्यवधान नहीं है इसलिए बाईं तरफ हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों से लेकर सबसे दाहिनी तरफ नंदा देवी तक की पूरी श्रृंखला यहां दिखाई देती है। सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री यानी चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं।   
                                      यह एक  ऐसा नजारा है तो वाकई दुर्लभ है। गढ़वाल के किसी इलाके से इतना खुला नजारा देखने को नहीं मिलता। एक इसी नजारे के लिए इस जगह को मसूरी, धनौल्टी व चंबा जैसी जगहों से भी कहीं ऊपर आंका जा सकता है। और तो और, चूंकि सुरकंडा का मंदिर लगभग दस हजार फुट की ऊंचाई पर है, इसलिए यहां बर्फ भी मसूरी-धनौल्टी से ज्यादा गिरती है। मार्च की शुरुआत तक यहां आपको बर्फ जमी मिल जाएगी। फिर कद्दूखाल ठीक राजमार्ग पर स्थित होने की वजह से पहुंचना सहज होने के कारण भी यह जगह ज्यादा आकर्षक बन जाती है।                                                                                                             

पर्यटन के शौकीन हैं तो विजिट करें -  http://www.top-10-india.com/ 

                                                       सुरकुट पर्वत पर गिरा था सती का सिर जब राजा दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में यज्ञ किया तो पुत्री सती व उनके पति शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से क्षुब्ध सती ने यज्ञ कुण्ड में प्राणों की आहुति दे दी। पत्‍‌नी वियोग में व्याकुल व क्रोधित भगवान शंकर सती के शव को लेकर हिमालय की ओर चल दिए। इस अपमान से क्षुब्ध सती ने यज्ञ कुण्ड में प्राणों की आहुति दे दी। पत्‍‌नी वियोग में व्याकुल व क्रोधित भगवान शंकर सती के शव को लेकर हिमालय की ओर चल दिए।                                                                                           
                                              इस दौरान भगवान विष्णु ने महादेव का बोझ कम करने के लिए सुदर्शन चक्र को भेजा। इस दौरान सती के शरीर के अंग भिन्न जगहों पर गिरे। माना जाता है कि इस दौरान सुरकुट पर्वत पर सती का सिर गिरा तभी से इस स्थान का नाम सुरकंडा पड़ा।   
                                           चंबा प्रखंड का जड़धारगांव देवी का मायका माना जाता है। यहां के लोग विभिन्न अवसरों पर देवी की आराधना करते हैं। मंदिर की समस्त व्यवस्था वही करते हैं। पूजा-अर्चना का काम पुजाल्डी गांव के लेखवार जाति के लोग करते है। सिद्धपीठों में मां सुरकंडा का महातम्य सबसे अलग है। देवी सुरकंडा सभी कष्टों व दुखों को हरने वाली हैं। नवरात्र व गंगादशहरे के अवसर पर देवी के दर्शनों से मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि सुरकंडा मंदिर में प्रतिवर्ष गंगा दशहरे के मौके पर विशाल मेला लगता है।

 सुरकंडा की तस्वीरें देखिये फोटो गैलरी में

                                                        सुरकंडा में चढ़ाई के लिए नीचे कद्दूखाल से ऊपर चोटी तक सीढ़ियां बनी हुई हैं। सीढ़ियाँ ख़त्म होने के साथ ही ढ़ालनुमा पक्का रास्ता शुरू हो जाता है ! चढ़ाई काफ़ी खड़ी है इसलिए बहुत जल्दी ही थकान महसूस होने लगती है! मंदिर जाने के रास्ते में कुछ स्थानीय लोग खाने-पीने का समान और मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद बेचते हैं! रास्ते में जगह-जगह लोगों के आराम करने के लिए व्यवस्था भी है। जो लोग पैदल जाने में समर्थ नहीं है उन लोगों के लिए यहाँ खच्चरों की व्यवस्था भी है। एक तरफ के रास्ते (चढ़ाई) का खच्चर पर अमूमन 400 रुपये का खर्च है।

कहां रुके

सुरकंडा या कद्दूखाल में रुकने की कोई बढ़िया जगह नहीं। कद्दूखाल के पास कुछेक छोटे-बड़े गेस्टहाउस हैं, लेकिन कायदे की जगहें या तो धनौल्टी में हैं या फिर चंबा में। ज्यादातर सैलानी मसूरी में रुककर दिनभर के लिए सुरकंडा आने का कार्यक्रम बनाते हैं। मेरी सलाह में मसूरी में भीड़-भाड़ के बीच रुकने के बजाय धनौल्टी में रुकना बेहतर है। धनौल्टी व कद्दूखाल के बीच सड़क पर ही अच्छे रिजॉर्ट हैं और सस्ते गेस्टहाउस भी। वहां रुककर आसपास की जगहों को आसानी से घूमा जा सकता है। यह इलाका अपने सेब के बगीचों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। इसलिए भी मसूरी की तुलना में यह जगह ज्यादा सुकून देती है। सुरकंडा देवी के मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली (वानस्पतिक नाम टेक्सस बकाटा) की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता। 
आसपास                                                                                                                               
 सुरकंडा देवी (कद्दूखाल) से महज सात किलोमीटर दूर 2300 मी. की ऊंचाई पर धनौल्टी है। धनौल्टी एक पर्यटक केन्द्र के रूप में पिछले 10-12 सालों में विकसित हुआ है। महानगरों के भीड़ भरे कोलाहलपूर्ण एवं प्रदूषित वातावरण से दूर यहां की शीतल ठंडी हवाओं का साथ पर्यटकों को फिर तरोताजा बना देता है। यहां के ऊंचे पर्वतों व घने वनों का नैसगिर्क एवं सुरम्य वातावरण धनौल्टी का मुख्य आकर्षण है। 

कैसे पहुंचे
                                                   सुरकंडा देवी के मंदिर के लिए कद्दूखाल से एक-डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। कद्दूखाल उत्तराखंड में मसूरी-चंबा राजमार्ग पर धनौल्टी और चंबा के बीच स्थित एक छोटा सा गांव है। कद्दूखाल धनौल्टी से सात किलोमीटर दूर है और चंबा से 23 किलोमीटर। चंबा व मसूरी से यहां जाने के लिए कई साधन हैं जिनमें टैक्सी व बसें आसानी से मिल जाती हैं। मसूरी यहां से 34 किलोमीटर और देवप्रयाग 113 किलोमीटर दूर है। ­­­­­   

Comments ( 1 )

  • ??????? ?????

    माता! हम रोज रात्रि के अन्तिम प्रहर में चरण वन्दन करने आते हैं।आप संज्ञान लेती हैं न ?

Leave a Comment